भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति का मेल यदि अंधानुकरण के रूप में होता है तो निश्चित ही उसमें संदेह है कि वह हमें सही ऊँचाई तक ले जाएगा या नहीं। क्योंकि इस मेल में हमारी मौलिकता, परंपरा और जड़ों से जुड़ी पहचान खो सकती है।
लेकिन भारतीय संस्कृति और हिन्दी का मेल सदैव उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगा, क्योंकि हिन्दी केवल भाषा नहीं बल्कि हमारी संस्कृति, साहित्य, विचार और जीवन-दर्शन की आत्मा है। जब हम अपने ज्ञान, विज्ञान और तकनीक को हिन्दी और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के साथ प्रस्तुत करेंगे, तब विकास केवल भौतिक नहीं बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक भी होगा।
अर्थात्:
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पाश्चात्य संस्कृति से हम तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति ले सकते हैं।
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भारतीय संस्कृति और हिन्दी से हम नैतिकता, संस्कार और आत्मिक शक्ति ले सकते हैं।
दोनों का संतुलित उपयोग ही हमें सच्ची उन्नति और वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाएगा।
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